आखिर क्यों ? ताइवान के लोग भारतीयों से नफरत करते हैं?

 

यह कहानी ताइवान में भारतीयों की स्थिति और ताइवान के लोगों की भारतीयों के प्रति दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है। इसमें ऐतिहासिक दृष्टांतों का उल्लेख है जिनके माध्यम से यह समझाने की कोशिश की गई है कि क्यों ताइवान के लोग भारतीयों से दूरी बनाए रखते हैं।


इस कहानी में ऐतिहासिक घटनाओं के माध्यम से भारतीय समाज की मानसिकता और आचरण पर विचार किया गया है। हालांकि, इसके सटीक तथ्य और कथनों को सत्यापित करना आवश्यक है, क्योंकि इसमें व्यक्त की गई भावनाएँ और दृष्टिकोण ताइवान के सभी लोगों के विचार नहीं हो सकते। यह एक व्यक्तिगत अनुभव और विचारधारा पर आधारित है, न कि पूरे समाज के।

ताइवान में करीब एक वर्ष बिताने


पर एक भारतीय की नौजवान की कई लोगों से दोस्ती हो जाती है , परंतु फिर भी उस नौजवान को लगता है कि वहाँ के लोग उनसे कुछ दूरी बनाकर रखते हैं, वहाँ के किसी दोस्त ने कभी उन्हें अपने घर चाय के लिए तक नहीं बुलाता था !


उन्हें यह बात बहुत अजीब लग रहा थी अतः आखिरकार उन्होंने एक करीबी दोस्त से पूछ ही लिया 


थोड़ा नजरअंदाज करने के बाद उसने जो बताया, उसे सुनकर उस भारतीय नौजवान के तो होश ही उड़ गए।


ताइवान वाले दोस्त ने पूछा, “200 वर्ष राज करने के लिए कितने ब्रिटिश भारत में रहे...?”


भारतीय महानुभाव ने कहा कि लगभग “10,000 रहे होंगे!”


तो फिर 32 करोड़ लोगों को यातनाएँ किसने दीं? वह आपके अपने ही तो लोग थे न.?


जनरल डायर ने जब "फायर" कहा था,तब 1300 निहत्थे लोगों पर गोलियाँ किसने दागी थीं? उस समय ब्रिटिश सेना तो वहाँ थी ही नहीं!


क्यों एक भी बंदूकधारी सब के सब भारतीय पीछे मुड़कर जनरल डायर को नहीं मार पाया...?


फिर उसने उन भारतीय नौजवान से कहा, आप यह बताओ कि कितने मुगल भारत आए थे? उन्होंने कितने वर्ष तक भारत पर राज किया? और भारत को गुलाम बनाकर रखा! और आपके अपने ही लोगों को धर्म परिवर्तन करवाकर आप के ही खिलाफ खड़ा कर दिया!


जोकि 'कुछ' पैसे के लालच में, अपनों पर ही अत्याचार करने लगे! अपनों के साथ ही दुराचार करने लगे…!!


तो मित्र, आपके अपने ही लोग, कुछ पैसे के लिए, अपने ही लोगों को सदियों से मार रहे हैं.आपके इस स्वार्थी धोखेबाज, दगाबाज, मतलबपरस्त, 'दुश्मनों से यारी और अपने भाईयों से गद्दारी'





इस प्रकार के व्यवहार एवं इस प्रकार की मानसिकता के लिए, हम भारतीय लोगों से सख्त नफ़रत करते हैं!


इसीलिए हमारी यही कोशिश रहती है कि यथासंभव, हम भारतीयों से सरोकार नहीं रखते...? उसने बताया कि, जब ब्रिटिश हांगकांग में आए तब एक भी व्यक्ति उनकी सेना में भरती नहीं हुआ क्योंकि उन्हें अपने ही लोगों के विरुद्ध लड़ना गवारा नहीं था...?


यह भारतीयों का दोगला चरित्र है, कि अधिकाँश भारतीय हर वक्त, बिना सोचे समझे, पूरी तरह बिकने के लिए तैयार रहते हैं...? और आज भी भारत में यही चल रहा है।


विरोध हो या कोई और मुद्दा, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में और खुद के फायदों वाली गतिविधियों में भारत के लोग आज भी, राष्ट्र हित को हमेशा दोयम स्थान देते हैं, आप लोगों के लिए "मैं और मेरा परिवार" पहले रहता है "समाज और देश बाद में"


ताइवान के लोगों की अपने देश के प्रति समर्पण को इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है:


ताइवान के लोग अपने देश के प्रति बहुत गर्व महसूस करते हैं और वे अपनी स्वतंत्रता और पहचान को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। वे अपने इतिहास और संस्कृति के प्रति गहरा सम्मान रखते हैं और राष्ट्रीय एकता और सामूहिक हित को महत्वपूर्ण मानते हैं। ताइवान के लोग अक्सर अपने देश की सुरक्षा और विकास के लिए बलिदान देने के लिए तैयार रहते हैं और उनकी यह भावना उनके सामाजिक और राजनीतिक जीवन में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।


इस प्रकार, ताइवान के लोगों का अपने देश के प्रति समर्पण उनकी राष्ट्रीयता और स्वाभिमान के प्रति उनकी गहरी निष्ठा को दर्शाता है। 

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